The Basic Principles Of sidh kunjika



नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि ।

देवी माहात्म्यं दुर्गा सप्तशति षष्ठोऽध्यायः

पाठमात्रेण संसिद्ध्येत् कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम् ॥ ४ ॥

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौ हुं क्लीं जूं स:

देवी माहात्म्यं दुर्गा सप्तशति द्वादशोऽध्यायः

श्री प्रत्यंगिर अष्टोत्तर शत नामावलि

देवी माहात्म्यं दुर्गा सप्तशति चतुर्थोऽध्यायः

अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति ॥ १४ ॥

इदंतु कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे।

धां धीं धू धूर्जटे: पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी।

जाग्रतं हि महादेवि जप ! सिद्धिं कुरूष्व मे।।

ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।।

देवी माहात्म्यं दुर्गा सप्तशति एकादशोऽध्यायः

सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ परम कल्याणकारी है। सिद्ध कुंजिका स्तोत्र आपके जीवन की समस्याओं और विघ्नों को दूर करने के लिए एक शक्तिशाली उपाय है। मां दुर्गा के इस स्तोत्र का here जो मनुष्य विषम परिस्थितियों में वाचन करता है, उसके समस्त कष्टों का अंत होता है। प्रस्तुत है श्रीरुद्रयामल के गौरीतंत्र में वर्णित सिद्ध कुंजिका स्तोत्र। सिद्ध कुंजिका स्तोत्र के लाभ

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